रांची के ऐतिहासिक नौ दिवसीय रथ मेले में शनिवार को भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी. दूर-दूर के इलाकों से लोग अपने परिवार के साथ रथ मेले का आनंद लेने आये.
बारिश के बावजूद नहीं थमा उत्साह, शंख, पइला, चकला-बेलन से लेकर पारंपरिक हथियारों की बिक्री
सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक है जगन्नाथपुर का रथ मेला
रांची. रांची के ऐतिहासिक नौ दिवसीय रथ मेले में शनिवार को भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी. दूर-दूर के इलाकों से लोग अपने परिवार के साथ रथ मेले का आनंद लेने आये. सुबह से ही मौसीबाड़ी मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी. मंदिर का पट सुबह पांच बजे से दोपहर 12 बजे तक और पुनः दोपहर तीन बजे से रात 8:30 बजे तक दर्शनार्थियों के लिए खुला रहा. बड़ी संख्या में भक्तों ने भगवान के दर्शन कर सुख-समृद्धि की कामना की. बारिश के बावजूद शाम को भी मेले में लोगों की भीड़ बनी रही. लोगों ने झूला झूलने, पारंपरिक व्यंजन चखने और खरीदारी में जमकर हिस्सा लिया. बच्चों के बीच माचिस वाली बंदूक, रंग-बिरंगे चश्मे, लाइट वाले खिलौने और बांसुरी खास आकर्षण का केंद्र रहे.
पारंपरिक वस्तुओं से सजा मेला परिसर
मेले में इस वर्ष भी पारंपरिक और घरेलू उपयोग की वस्तुओं की भरमार रही. तोता, कबूतर, शंख, शंखा-पोला से लेकर तीर-धनुष, लोहे और लकड़ी के बर्तन, पूजा सामग्री, साड़ी, शर्ट, मिठाई और सजावटी सामान की दुकानों पर ग्राहकों की अच्छी खासी भीड़ देखी गयी. रथ मेला न सिर्फ धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि यह लोक संस्कृति, परंपरागत कला और हस्तशिल्प का जीवंत मंच भी है. यह मेला न केवल स्थानीय लोगों के लिए हर्षोल्लास का अवसर है, बल्कि दूर-दराज से आये शिल्पकारों और व्यापारियों के लिए भी आजीविका का साधन है.
भाला-बरछी से लेकर मोढ़ा और बंसी तक की बिक्री
मेले की खासियत यहां पारंपरिक सामान मिलना भी है, जिस कारण दूरदराज से यहां लोग आते हैं. मेले में रोजमर्रा में प्रयोग होने वाले पारंपरिक सामान आसानी से मिल जाते हैं. रांची समेत दूरदराज के दुकानदारों ने मेले में दुकानें लगायी हैं. इनमें चौकी, बेलन, बर्तन, कृषि में प्रयोग होने वाले सामान-कुदाल, बेलचा, सब्बल आदि. मनोरंजन के सामान मांदर, ढोलकी, नगाड़े, बांसुरी आदि. लोहे के सामान, हसुवा, चपड़, चाकू आदि. मसाला पीसने के लिए शील पत्थर, बांस के सामान सूप, डलिया, टोकरी, कुमनी, मोढ़ा आदि. मछली बझाने के लिए बंसी व जाल, पूजन सामग्री, कांसा, पीतल व अल्युमीनियम के बर्तन, पारंपरिक हथियार फारसा, कटारी, भुजाली, भाला, बरछी, तलवार और तीर-धनुष की खूब बिक्री हो रही है.
हस्तशिल्प और पारंपरिक उत्पादों को बढ़ावा
मांडर से आयी पुनी देवी ने बताया कि पारंपरिक पइला की आज भी मांग है. लोग इसे शुभ मानकर खरीदते हैं. झालदा के सनातन कुंभकार लकड़ी के चकला-बेलन लेकर पहुंचे थे, जो सभी आकारों में उपलब्ध है. घाटशिला से आये सौरव सुतार पत्थर के बर्तन, शिवलिंग और दीपक लेकर पहुंचे, जिन्हें लोग खूब पसंद कर रहे हैं. बासुकीनाथ से आये बिट्टू शर्मा ने बताया कि मेला में दुकान लगाने का किराया अधिक है, जिससे छोटे दुकानदारों को परेशानी होती है. वहीं, बंगाल से आये उज्ज्वल मंडल शंख व शंखा-पोला की बिक्री कर रहे हैं, जो विशेषकर महिलाओं को आकर्षित कर रहे हैं.