महाराष्ट्र की फडणवीस सरकार ने कक्षा 1 से हिंदी अनिवार्य करने के अपने फैसले को वापस ले लिया है. यह निर्णय व्यापक जन विरोध, विपक्षी दलों के आंदोलन और मराठी अस्मिता के मुद्दे के कारण लिया गया है.
विपक्षी दलों के एकजुट विरोध और आगामी स्थानीय चुनावों के मद्देनजर सरकार को यह कदम उठाना पड़ा. अब त्रिभाषा फॉर्मूले पर एक विशेषज्ञ समिति विचार करेगी.
महाराष्ट्र विधानसभा का मानसून सत्र सोमवार, 30 जून से शुरू हो रहा है. इससे पहले महाराष्ट्र की देवेंद्र फडणवीस सरकार ने कक्षा 1 से हिंदी भाषा को अनिवार्य रूप से पढ़ाने के फैसला वापस ले लिया है. महाराष्ट्र सरकार का यह फैसला सिर्फ शैक्षणिक नहीं, बल्कि राजनीतिक और सामाजिक दबावों से जुड़ा बड़ा कदम माना जा रहा है, क्योंकि महाराष्ट्र की विपक्षी पार्टियां शिव सेना (उद्धव ठाकरे) और मनसे के राज ठाकरे से इसे मराठी अस्मिता का मुद्दा बनाते हुए पांच जुलाई को मार्च का आह्वान किया था.
महाराष्ट्र की राजनीति में लंबे समय के बाद उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे इस मुद्दे पर एकजुट हुए हैं. इससे राज्य में जो माहौल बन रहा था, उसने सरकार को अपने फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए बाध्य किया. सरकार के फैसले के बाद विपक्षी पार्टियों ने पांच जुलाई को मुंबई में मार्च रद्द करने का ऐलान किया है और इसे मराठी अस्मिता की जीत करार दिया है. उद्धव ठाकरे ने ऐलान किया कि अब पांच जुलाई को विजय मार्च निकाला जाएगा.
हिंदी पर फडणवीस सरकार का यू-टर्न
राज्य सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के तहत त्रिभाषा फॉर्मूला लागू करते हुए हिंदी को अनिवार्य करने की घोषणा की थी, लेकिन लगातार हो रहे विरोध, विपक्षी दलों के आक्रामक रुख और मराठी अस्मिता के मुद्दे ने सरकार को फैसला बदलने पर मजबूर कर दिया. सरकार ने 16 अप्रैल और 17 जून 2025 को जारी किए गए दोनों सरकारी आदेशों (GRs) को रद्द कर दिया है और यह स्पष्ट किया है कि त्रिभाषा नीति पर अगला कदम एक विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट के बाद ही तय किया जाएगा.
जानें क्यों फडणवीस सरकार ने फैसला लिया वापस
महाराष्ट्र सरकार ने कक्षा 1 से हिंदी भाषा को अनिवार्य रूप से पढ़ाने का फैसला जनता के तीव्र विरोध और राजनीतिक दबाव को देखते हुए वापस ले लिया. आइए जानें वो वजह जिसकी वजह से फडणवीस सरकार ने यू-टर्न लेते हुए फैसला रद्द कर दिया है.
विपक्ष का आंदोलन: शिवसेना (ठाकरे गुट), मनसे, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने इस फैसले के खिलाफ जोरदार अभियान चलाया. इस मुद्दे पर लंबे समय से एक दूसरे के विरोधी रहे ठाकरे भाई (उद्धव ठाकरे) और मनसे के प्रमुख राज ठाकरे एक साथ आ गए. इन दोनों पार्टियों ने पांच जुलाई को मुंबई में महामोर्चा का आह्वान किया था. महाराष्ट्र की दूसरी विपक्षी पार्टी एनसीपी (एसपी) के नेता शरद पवार ने भी शिव सेना (यूबीटी) और राज ठाकरे के आंदोलन को समर्थन किया था. इससे साफ था कि इस मुद्दे पर विपक्ष एकजुट हो गया था और सरकार यह नहीं चाहती थी. शिवसेना ने “हिंदी किताबों की होलिका” जलाकर सांकेतिक विरोध किया, जिससे सरकार पर दबाव और बढ़ा. शिव सेना (यूबीटी) के नेता उद्धव ठाकरे ने सरकार के फैसले पर कहा कि मराठी लोगों की ताकत के सामने सरकार की ताकत हार गई है. सरकार मराठी लोगों को विभाजित करने में फेल रही है.
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मराठी अस्मिता का सवाल: हिंदी को अनिवार्य किए जाने को विपक्षी पार्टियों ने महाराष्ट्र में मराठी भाषा, संस्कृति और अस्मिता से जोड़ दिया. इससे लोगों गहरे रूप से जुड़े हुए थे. जब सरकार ने कक्षा 1 से हिंदी पढ़ाने का निर्णय लिया, तो इसे “मराठी पर हिंदी थोपने” के रूप में देखा गया. महाराष्ट्र इसके पहले भी मराठी बनाम हिंदी का विवाद हो चुका है. मराठी अस्मिता का बाबा साहेब ठाकरे ने लंबे समय तक उठाया था. राज ठाकरे ने भी मराठी अस्मिता का मुद्दा बनाया था और यह राजनीतिक दृष्टि से काफी संवेदनशाली है. |
समाज में व्यापक विरोध: शिक्षाविदों, अभिभावकों और मराठी संगठनों ने कहना है कि छोटे बच्चों पर एक और भाषा थोपना उन्हें अनावश्यक रूप से बोझ देगा. सोशल मीडिया और सार्वजनिक मंचों पर भी सरकार के खिलाफ काफी आलोचना हुई. कई संगठनों और राजनीतिक दलों ने इसे “भाषाई आक्रमण” बताते हुए विरोध शुरू किया. |
महाराष्ट्र में निकाय चुनाव: महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव में महागठबंधन की पार्टियों कांग्रेस, एनसीपी (एसपी) और शिव सेना (यूबीटी) को बड़ी बढ़त मिली थी, लेकिन विधासनभा चुनाव में महागठबंधन को बड़ा झटका लगा और भाजपा 132, एकनाथ शिंदे की शिव सेना 57 और अजित पवार की एनसीपी को 41 सीटों पर जीत मिली थी. इस तरह से महायुति को 230 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि महाविकास अघाड़ी (एमवीए) गठबंधन में कांग्रेस, शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) और शरद पवार की एनसीपी को केवल 46 सीटों पर संतोष करना पड़ा था. अब फिर से महाराष्ट्र में निकाय चुनाव होंगे. ऐसे में हिंदी अनिवार्य किए जाने को मुद्दे पर जनाक्रोश फैल रहा था. विपक्ष इस मुद्दे को हवा दे रहा था. इससे पहले ही यह मुद्दा आंदोलन में बदल जाता, सरकार ने फैसला वापस ले लिया. |
त्रिभाषा फॉर्मूले को लेकर भ्रम: राज्य सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के तहत त्रिभाषा फॉर्मूला लागू करने की योजना बनाई थी. लेकिन यह स्पष्ट नहीं किया गया कि हिंदी के साथ बच्चों को क्या विकल्प मिलेंगे, जिससे भ्रम और आक्रोश पैदा हुआ. विपक्ष के विरोध के मद्देनजर हिंदी भाषा की अनिवार्यता को लेकर रविवार को महाराष्ट्र कैबिनेट की बैठक हुई. इस बैठक के बाद मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने घोषणा की कि सरकार ने 16 अप्रैल और 17 जून 2025 के दोनों सरकारी प्रस्ताव (GRs) को रद्द कर दिया है. उन्होंने कहा कि अब इस विषय पर एक विशेषज्ञ समिति बनाई जाएगी, जिसकी अध्यक्षता शिक्षाविद डॉ नरेंद्र जाधव करेंगे. यह समिति तय करेगी कि त्रिभाषा फॉर्मूला कैसे और किस कक्षा से लागू किया जाए, और छात्रों को कौन-कौन से विकल्प दिए जाएं. |