*रांची* : - रांची की ऐतिहासिक धरती रविवार को एक अद्भुत अध्यात्मिक जागरण की साक्षी बनी, जब लालजी हिरजी रोड स्थित सत्य गंगा ऑर्किड परिसर में विहंगम योग संत समाज द्वारा सद्गुरु आचार्य श्री स्वतंत्र देव जी महाराज का 78वां जन्मोत्सव अत्यंत भव्यता एवं भावनात्मक उल्लास के साथ मनाया गया। यह आयोजन केवल एक पर्व नहीं, बल्कि अध्यात्मिक ऊर्जा की एक ऐसी लहर थी, जिसने न केवल उपस्थित श्रद्धालुओं को, बल्कि सम्पूर्ण वातावरण को आध्यात्मिकता से सराबोर कर दिया।
*भक्ति, साधना और श्रद्धा का त्रिवेणी संगम*
कार्यक्रम का शुभारंभ वैदिक मंत्रोच्चार और संतवाणी के संग हुआ, जिसमें उपस्थित श्रद्धालुओं ने पूर्ण समर्पण भाव से भाग लिया। भक्ति, साधना और श्रद्धा की त्रिवेणी में डूबा यह आयोजन एक साधारण धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि आत्मा और परमात्मा के अद्वितीय मिलन का प्रतीक बन गया। सत्संग स्थल पर मौजूद प्रत्येक चेहरा एक ही प्रकाश से दीप्त था — सद्गुरु के प्रेम और आशीर्वाद का।
*सद्गुरु के जीवन पर भावपूर्ण प्रस्तुति*
विहंगम योग मासिक पत्रिका के संपादक एवं संत समाज के प्रमुख स्तंभ, परम श्रद्धेय कवि श्री सुखनंदन सिंह 'सदैव' जी ने इस अवसर पर अत्यंत मार्मिक और प्रेरक शैली में सद्गुरु स्वतंत्र देव जी महाराज के जीवन के गौरवशाली प्रसंगों को प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि: "विश्व के समस्त पंथ और विचारधाराएं जहां आत्मा को परमात्मा से मिलाने में असमर्थ हैं, वहीं विहंगम योग वह दिव्य प्रणाली है, जो सहज और अनुभवात्मक मार्ग से जीव को उसके परम लक्ष्य तक पहुंचाने की सामर्थ्य रखती है। उनकी वाणी में न केवल ज्ञान था, बल्कि वह ऊर्जा भी थी जो श्रद्धालुओं को भीतर तक झंकृत कर गई।
*सेवकों की सजीव उपस्थिति और समर्पण*
इस भव्य आयोजन में रांची जिला के सभी वरिष्ठ सेवकों ने अपनी गरिमामयी उपस्थिति से आयोजन को दिव्यता प्रदान की। श्री विष्णु कांत खेमका, डॉ पंकज दुबे, गजेंद्र सिंह, शोभा राम यादव, डॉ निरंजन प्रसाद, अनिल शर्मा, राम लखन राणा, सच्चिदानंद शर्मा सहित अनेकों सेवकों एवं भक्तों ने तन-मन-धन से अपनी सेवाएं समर्पित कीं। उनकी सक्रिय भागीदारी यह प्रमाणित करती है कि विहंगम योग केवल एक संस्था नहीं, बल्कि एक जीवन पद्धति है — एक ऐसी चेतना जो व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन को दिशा और दृष्टि देती है।
*विशाल भंडारा: सेवा की सुगंध से भरा आयोजन*
कार्यक्रम के समापन पर एक विशाल भंडारे का आयोजन किया गया, जिसमें सैकड़ों श्रद्धालुओं ने प्रसाद ग्रहण कर आत्मिक संतोष की अनुभूति की। यह भंडारा केवल भोजन नहीं था, बल्कि 'नर सेवा नारायण सेवा' की सजीव व्याख्या था।
*यह केवल उत्सव नहीं, आत्मबोध का क्षण था*
सद्गुरु स्वतंत्र देव जी महाराज का यह जन्मोत्सव रांचीवासियों के लिए एक अध्यात्मिक पर्व बनकर आया। यह कार्यक्रम यह सिद्ध कर गया कि जब श्रद्धा, साधना और सेवा एक सूत्र में बंध जाते हैं, तब अध्यात्मिक ऊर्जा की लहरें पूरे वातावरण को सकारात्मकता और दिव्यता से भर देती हैं।इस कार्यक्रम ने यह संदेश दिया कि सद्गुरु के मार्गदर्शन में मानव जीवन अपने उच्चतम उद्देश्य — आत्म-साक्षात्कार और परमात्मा की प्राप्ति — की ओर बढ़ सकता है।