- मधुकर भारद्वाज को लेकर नाराज़गी खुलकर सामने
झारखंड विधानसभा सचिवालय में 31 अगस्त 2025 को सेवानिवृत्त हुए संयुक्त सचिव मधुकर भारद्वाज के सम्मान में आज एक विदाई समारोह का आयोजन किया गया। मंच पर तो उनके सेवा काल की सराहना हुई, लेकिन अंदरखाने की असलियत इससे बिल्कुल अलग रही।
करीब 36 साल 9 माह की लंबी सेवा के बावजूद मधुकर भारद्वाज को लेकर सचिवालय के कर्मचारियों और अधिकारियों के बीच राहत और खुशी का माहौल देखा गया। अधिकांश कर्मचारियों का मानना है कि उनके व्यवहार और कामकाज के तौर-तरीके ने हमेशा से कार्य वातावरण को तनावपूर्ण बनाए रखा।
कर्मचारियों में असंतोष और राहत
सचिवालय सूत्र बताते हैं कि मधुकर भारद्वाज की कार्यशैली अत्यधिक दबावपूर्ण रही।
छोटे कर्मचारियों से लेकर अधिकारी स्तर तक उनके साथ काम करने वाले लोग अक्सर असहज महसूस करते थे।
कई बार संसदीय कार्यों के नाम पर उन्होंने सहयोगियों को अपमानित करने में भी परहेज़ नहीं किया।
यही वजह है कि उनके विदाई समारोह के मंच से तालियाँ तो बजाई गईं, लेकिन गलियारों में कर्मचारियों ने “अच्छा हुआ अब ये गए” जैसी प्रतिक्रियाएँ दीं।
मंच पर औपचारिक सराहना, गलियारों में नाराज़गी
माननीय विधानसभा अध्यक्ष रवीन्द्रनाथ महतो और प्रत्यायुक्त विधान समिति के सभापति सरयू राय ने औपचारिकता निभाते हुए उनके कार्यकाल को सराहा और कहा कि उन्होंने अपने कर्तव्यों का निर्वहन निष्ठा से किया। लेकिन वास्तविकता यह है कि कर्मचारियों के बीच उनकी छवि “कठोर और मनमानी करने वाले अधिकारी” की रही।
गलियारों की चर्चा
सचिवालय के गलियारों में चर्चा रही कि मधुकर भारद्वाज ने अपने पूरे कार्यकाल में सहयोगियों की बातों को महत्व नहीं दिया और केवल आदेशात्मक रवैया अपनाया। कई लोग यह भी मानते हैं कि यदि वे पहले ही रिटायर हो जाते तो कार्यसंस्कृति में सकारात्मक बदलाव आ सकता था।
दिखावटी सम्मान, असली राहत
विदाई समारोह में प्रभारी सचिव और कुछ अधिकारियों ने उनके उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएँ दीं। लेकिन हकीकत यह है कि अधिकांश सहकर्मियों ने भीतर-ही-भीतर इस मौके को “राहत की घड़ी” बताया। उनकी विदाई को औपचारिक सम्मान तो दिया गया, पर वास्तव में सचिवालय ने एक ऐसे अधिकारी से छुटकारा पाया, जिससे कर्मचारियों के बीच असंतोष लंबे समय से पनप रहा था।
कुल मिलाकर, मधुकर भारद्वाज की सेवानिवृत्ति को जहां मंच पर सम्मान का आवरण पहनाया गया, वहीं सचिवालय के कर्मचारियों ने इसे राहत और संतोष का दिन करार दिया।